नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती, पढ़िये हसरत मोहानी की बेहतरीन शायरी...
याद
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती , मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
महफ़िल
तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजाल , देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया
ख़याल
आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न, आया मिरा ख़याल तो शर्मा के रह गए
तस्वीर
कहने को तो मैं भूल गया हूँ मगर ऐ यार , है ख़ाना-ए-दिल में तिरी तस्वीर अभी तक
अयादत
देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर , कहने को ये है कि आए हैं अयादत कर के
दुश्मनी
ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की , दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआ
दर्द
और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है , इक तिरे दर्द को पहलू में छुपा रक्खा है
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