हमें तो ख़ैर बिखरना ही था कभी न कभी, पढ़े इरफ़ान सिद्दीक़ी के बहतरीन शेर...


2023/12/25 16:29:13 IST

ख़्वाब

    उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए , कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए

ज़माना

    बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है , उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है

होशियारी

    होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है , रंज कम सहता है एलान बहुत करता है

चराग़

    रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़ , कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है

किनारे

    बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं , कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं

शाम

    तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद, शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो

शिकायत

    सर अगर सर है तो नेज़ों से शिकायत कैसी, दिल अगर दिल है तो दरिया से बड़ा होना है

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