इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी... पढ़ें अकबर इलाहाबादी के उम्दा शेर
ख़ुदा पर शायरी
रक़ीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में, कि 'अकबर' नाम लेता है ख़ुदा का इस ज़माने में.
हुक्काम पर शायरी
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ, रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ.
वफ़ा पर शायरी
बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें, बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें.
तबस्सुम पर शायरी
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी, ज़ालिम में और इक बात है इस सब के सिवा भी.
लीडरों की धूम
लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं, सब तो जेनरेल हैं यहाँ आख़िर सिपाही कौन है.
दो बोतलें इकट्ठी
जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बोतलें इकट्ठी, मुल्ला की दौड़ मस्जिद 'अकबर' की दौड़ भट्टी.
ज़माने पर शायरी
नाज़ क्या इस पे जो बदला है ज़माने ने तुम्हें, मर्द हैं वो जो ज़माने को बदल देते हैं.
View More Web Stories