न जी भर के देखा न कुछ बात की...बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की..पढ़ें आज के कुछ चुनिंदा शेर


अकबर इलाहाबादी

    दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ.. बाजार से गुज़रा हूँ खरीदार नहीं हूं..

बशीर बद्र

    यहां लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं...मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे...

बशीर बद्र

    जिंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं.. पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है..

साहिर लुधियानवी

    देखा है जिंदगी को कुछ इतने करीब से..चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से...

अल्लामा इक़बाल

    दुनिया की महफिलों से उकता गया हूँ या रब.... क्या लुत्फ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो..

असरार-उल-हक़ मजाज़

    बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना..तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है..

निदा फ़ाज़ली

    दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है...मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है..

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