नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है और ख़्वाब ..,पेश हैं राहत इंदौरी की शेर


2024/09/13 13:38:59 IST

हौसले

    हौसले ज़िंदगी के देखते हैं, चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं

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ख़्वाब

    नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है, ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं

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क़ाफ़िले

    रोज़ हम इक अँधेरी धुंद के पार, क़ाफ़िले रौशनी के देखते हैं

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ज़ख़्म

    धूप इतनी कराहती क्यूँ है, छांव के ज़ख़्म सी के देखते हैं

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बाँध

    टिकटिकी बाँध ली है आँखों ने, रास्ते वापसी के देखते हैं

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ज़हर

    पानियों से तो प्यास बुझती नहीं, आइए ज़हर पी के देखते हैं

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ख़बर

    मैं लाख कह दूं कि आकाश हूँ ज़मीं हूं मैं, मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूं मैं

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कांटा

    न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का कांटा हमीं से निकलेगा

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