नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है और ख़्वाब ..,पेश हैं राहत इंदौरी की शेर
हौसले
हौसले ज़िंदगी के देखते हैं, चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
Credit: freepikख़्वाब
नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है, ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं
Credit: freepikक़ाफ़िले
रोज़ हम इक अँधेरी धुंद के पार, क़ाफ़िले रौशनी के देखते हैं
Credit: freepikज़ख़्म
धूप इतनी कराहती क्यूँ है, छांव के ज़ख़्म सी के देखते हैं
Credit: freepikबाँध
टिकटिकी बाँध ली है आँखों ने, रास्ते वापसी के देखते हैं
Credit: freepikज़हर
पानियों से तो प्यास बुझती नहीं, आइए ज़हर पी के देखते हैं
Credit: freepikख़बर
मैं लाख कह दूं कि आकाश हूँ ज़मीं हूं मैं, मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूं मैं
Credit: freepikकांटा
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का कांटा हमीं से निकलेगा
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