वहाँ मक़ाम तो रोने का था मगर ऐ दोस्त...पढ़ें ज़फ़र इकबाल के शेर....
मिरा ज़ाहिर होना
मैं किसी और ज़माने के लिए हूँ शायद, इस ज़माने में है मुश्किल मिरा ज़ाहिर होना
Credit: Google पिछले बरस की कुदूरतें
चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें, दीवार से पुराना कैलन्डर उतार दे
Credit: Google ख़ूब अच्छा हो रहा है
ख़राबी हो रही है तो फ़क़त मुझ में ही सारी, मिरे चारों तरफ़ तो ख़ूब अच्छा हो रहा है
Credit: Google मुझ में हैं गहरी उदासी
मुझ में हैं गहरी उदासी के जरासीम इस क़दर, मैं तुझे भी इस मरज़ में मुब्तला कर जाऊँगा
Credit: Google उस के नाम की नींद
भरी रहे अभी आँखों में उस के नाम की नींद, वो ख़्वाब है तो यूँही देखने से गुज़रेगा
Credit: Google दूल्हा हुआ मैं
मौत के साथ हुई है मिरी शादी सो 'ज़फ़र', उम्र के आख़िरी लम्हात में दूल्हा हुआ मैं
Credit: Google सूरत देख ली हम ने
वो सूरत देख ली हम ने तो फिर कुछ भी न देखा, अभी वर्ना पड़ी थी एक दुनिया देखने को
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