Urdu Poetry: बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए, हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते...
मजरूह सुल्तानपुरी
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए..
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते..!!
अख़्तर शीरानी
ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना..
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते..!!
हैदर अली आतिश
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते..
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते..!!
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
तिरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे..
जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी..!!
दाग़ देहलवी
डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं..
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया..!!
सीमाब अकबराबादी
है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू..
मैं ने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे..!!
अब्बास रिज़वी
बहुत अज़ीज़ थी ये ज़िंदगी मगर हम लोग..
कभी कभी तो किसी आरज़ू में मर भी गए..!!
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