Urdu Poetry: बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए, हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते...


2023/12/26 23:02:29 IST

मजरूह सुल्तानपुरी

    बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए.. हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते..!!

अख़्तर शीरानी

    ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना.. ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते..!!

हैदर अली आतिश

    ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते.. हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते..!!

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

    तिरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे.. जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी..!!

दाग़ देहलवी

    डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं.. सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया..!!

सीमाब अकबराबादी

    है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू.. मैं ने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे..!!

अब्बास रिज़वी

    बहुत अज़ीज़ थी ये ज़िंदगी मगर हम लोग.. कभी कभी तो किसी आरज़ू में मर भी गए..!!

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