क्या है नांगेली की कहानी जिसने चूचुत प्रथा के खिलाफ अपने शरीर के इस हिस्से का दिया था बलिदान


2024/11/06 20:02:56 IST

चूचुत प्रथा का उत्पीड़न

    नांगेली के समय में, केरल के कुछ हिस्सों में 'चूचुत' नामक एक प्रथा प्रचलित थी. इसके तहत दलित महिलाओं को अपनी छाती दिखानी पड़ती थी और उनसे उच्च जातियों के पुरुषों के सामने अपनी छाती दिखाने के लिए टैक्स लिया जाता था.

चूचुत का विरोध

    नांगेली ने इस प्रथा को अपने समाज और अपनी गरिमा के खिलाफ समझा. उन्होंने इस भेदभावपूर्ण प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने का निर्णय लिया, जो महिलाओं को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी तंग करती थी.

नांगेली का साहसिक कदम

    नांगेली ने चूचुत प्रथा के खिलाफ प्रतिरोध करते हुए एक साहसिक कदम उठाया. उन्होंने अपने शरीर के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से (स्तन) को काट डाला, ताकि वे कभी भी इस प्रथा का हिस्सा न बन सकें.

प्रतिरोध का संदेश

    नांगेली का यह कदम गांव में एक ज्वाला की तरह फैला. यह एक शक्तिशाली संदेश था कि एक महिला अपनी गरिमा और स्वतंत्रता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.

गांव में अफरा-तफरी

    नांगेली के इस कदम ने पूरे गांव में हलचल मचा दी. लोग हैरान थे और कुछ लोग उनके साहस को सलाम करते हुए तो कुछ उनकी मानसिक स्थिति पर सवाल उठाने लगे.

मृत्यु और संघर्ष

    दुर्भाग्यवश, नांगेली का यह संघर्ष बहुत लंबा नहीं चल सका. कुछ समय बाद, नांगेली की मृत्यु हो गई, लेकिन उनका यह विरोध आज भी इतिहास में जीवित है.

नांगेली का प्रभाव

    नांगेली का साहसिक कदम भारतीय समाज में महिला सशक्तिकरण और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गया. उनका नाम अब चूचुत प्रथा के खिलाफ संघर्ष का एक अविस्मरणीय उदाहरण माना जाता है.

सामाजिक सुधार की दिशा

    नांगेली की कुर्बानी ने कई समाज सुधारकों को प्रेरित किया, जिन्होंने चूचुत प्रथा और अन्य जातिवाद आधारित भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई. उनके संघर्ष को याद किया जाता है जब भी समानता और सम्मान की बात होती है.

नांगेली की विरासत

    नांगेली का नाम केरल और भारत में उन महिलाओं और पुरुषों के लिए एक प्रेरणा बन गया है, जो समाज में महिलाओं की समानता और अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. उनकी वीरता आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है.

एक प्रेरणा

    नांगेली की कहानी न केवल महिलाओं के अधिकारों के लिए एक प्रेरणा है, बल्कि यह हमें यह सिखाती है कि किसी भी सामाजिक प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने के लिए साहस और संघर्ष जरूरी है.

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