
दिवाली पर उल्लू की बलि क्यों देते थे मुगल

मुगलों की दिवाली
बाजार से लेकर घरों तक दिवाली की रौनक दिखने लगी है. घर सज रहे हैं. लोग खरीदरी में व्यस्त हैं.

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लेकिन सवाल है कि क्या मुगलों के दौर में भी दिवाली ऐसी ही होती थी. उस दौर की दिवाली आज की दिवाली से कितनी अलग थी?

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मुगलों की नजर में दिवाली का त्योहर सिर्फ एक जगमगाती रातभर था.

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उस दौर में भी अंधविश्वास इस कदर हावी था कि इस दिन उल्लू की बलि दी जाती थी.

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उस दौर में दिवाली को जश्न-ए-चिरागा के नाम से जाना जाता था.

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हिन्दुओं के त्योहारों में मुगलों की तीसरी पीढ़ी के बादशाह यानी अकबर खास दिलचस्पी लेते थे.

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अकबर के दौर में ही आगरा के किले और फतेहपुर सीकरी में इसे बनाने का सिलसिला शुरू हुआ. यहां बेगम जोधाबाई और बीरबल रहते थे.

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