पिछले एक हफ्ते में बदला मौसम कई तरह के परिवर्तन हमारे जीवन में लाने में कामयाब रहा। इसने तापमान कम होने के साथ-साथ मनुष्य के शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियों को जन्म दिया। सर्दी और गर्मी की वजह से कई प्रकार की गले की बीमारियाें ने मनुष्य को जकड़ लिया। बारिश और ओलावृष्टि का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव किसानों पर पड़ा है। पिछले हफ्ते में दो बार हुई भीषण ओलावृष्टि से लाखों हेक्टेयर में बोई गई गेहूं की फसल तबाह हो गई है। किसानों को कुछ कुछ दिन बाद ही फसलों को काटना था यही नहीं साथ में खड़ी सरसों की फसल भी धराशायी हो गई।
एक साथ दोहरे नुकसान के कारण किसानों को व्यापक स्तर पर आर्थिक नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई कर पाना काफी मुश्किल प्रतीत हो रहा है। बारिश और ओलावृष्टि किसी खास प्रदेश या विशेष क्षेत्र में नहीं हुई बल्कि इसका प्रकोप पूरे भारतवर्ष में रहा है। पश्चिमी विक्षोभ के कारण बदला मौसम पूरे भारत में प्रभावी रहा। राजस्थान, गुजरात से शुरू हुई बारिश का दौर पश्चिम बंगाल, आसाम तक पहुंच गया। 1 हफ्ते तक रुक-रुक कर बदले मौसम की वजह से तीन-चार दिनों तक बारिश हुई और दो-तीन दिन अलग-अलग क्षेत्रों में ओले भी गिरे।
ओले गिरने की वजह से खेतों में खड़ी फसल तबाह तो हुई है, साथ ही किसानों के अरमानों पर भी पानी फिर गया। इस वित्तीय वर्ष में अनुमान लगाया गया था कि काफी अच्छी मात्रा में गेहूं की फसल होगी। पिछले वर्ष यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण गेहूं के दाम में काफी वृद्धि हुई थी। इसका सीधा असर आम लोगों की रसोई पर पड़ा था। आटा महंगा होने की वजह से रोटी भी महंगी हुई थी। यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि यूक्रेन गेहूं का सबसे अधिक निर्यात करने वाला देश रहा है। युद्ध की त्रासदी झेलने के कारण इस वर्ष उसके यहां गेहूं की पैदावार ना के बराबर हुई। इसलिए सारा दारोमदार भारत, अमेरिका, बांग्लादेश जैसे देशों पर था जहां गेहूं की फसल अच्छी मात्रा में होती है। लेकिन प्राकृतिक आपदा के चलते गेहूं की लाखों हेक्टेयर फसल तबाह हो गई।
आने वाले दिनों में गेहूं की किल्लत से लोगों को जूझना पड़े तो यह कोई बड़ी बात नहीं होगी। हालांकि केंद्र सरकार ने आश्वस्त किया है कि तबाह हुई फसल की एवज में किसानों को मुआवजा भी दिया जाएगा। यह बात सही है कि किसानों को उनके नुकसान का मुआवजा सही समय पर मिल जाए लेकिन अन्न की बर्बादी की वजह से आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ने की संभावना भी काफी हद तक बढ़ गई है। इसे कम करने के लिए भारत को काफी मात्रा में गेहूं दूसरे देशों से आयात करना पड़ेगा।
अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि आयात किए गए गेहूं से भारतीय लोगों का पेट कितना भरता है। इसके अलावा सरसों की फसल तबाह होने की वजह से खाद्य तेलों के भी दाम में बढ़ोतरी की प्रबल संभावना दिखाई दे रही है। सरसों की पैदावार कम होने की वजह से खाद्य तेलों के दाम काफी तेजी से बढ़ सकते हैं। इस पर नियंत्रण करने के लिए केंद्र सरकार को अवश्य ही कोई उपाय करना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो आने वाले दिनों में आम लोगों को दोहरी महंगाई से दो-चार होना पड़ेगा। First Updated : Monday, 27 March 2023